रायपुर । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रायपुर महानगर द्वारा सरदार पटेल मैदान देवेंद्र नगर में राष्ट्र चेतना संगम में रविवार को स्वयंसेवकों का एकत्रीकरण व कुटुम्ब मिलन के कार्यक्रम का आयोजन किया गया।कार्यक्रम की अध्यक्षता अखिल भारतीय गोंड महासभा के अध्यक्ष मंगलदास ठाकुर ने की तथा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह मुकुंद रहे ।कार्यक्रम के मुख्य वक्ता संघ के सह सरकार्यवाह मुकुंद जी ने कहा, परंपराओं की रक्षा करना भी हम सबकी जिम्मेदारी है। हमारी परंपरा में सेवा नि:स्वार्थ भाव से की जाती है। ऐसी परंपराएं हर समाज, पंथ, संप्रदाय में है। समाज में जीवनमूल्य के मायने हैं, नियम बदल सकते हैं किन्तु मूल्य नहीं बदल सकते। पूजा पद्धति अलग हो सकती है, किन्तु जीवन मूल्य नहीं बदलते। जनजातीय परंपरा वैदिक या अवैदिक हो सकता है, मत पंथ, संप्रदाय अलग हो सकते हैं किन्तु मूल्य तो पूरे भारत का एक ही है।संघ के सह सरकार्यवाह मुकुंद जी ने कहा कि लाखों हजारों वर्षों से समाज की रचना हुई उसमें कुछ बातें समान हैं। जीवनदृष्टि सभी की एक है। धरती को मातृ समान मानना। हम पानी, नदी और गौ को माता समान मानते है। हम पेड़, पौधे, पक्षी की पूजा करते हैं, यह हमारे मूल्य हैं। यह हमारे पूर्वजों ने हजारों साल से अपने अनुभव से बनाया है। भगवान को न मानने वाले का भी स्थान है, पहले भी था आज भी है।कार्यक्रम की अध्यक्षता अखिल भारतीय गोंड महासभा के अध्यक्ष मंगलदास ठाकुर ने की तथा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह मुकुंद रहे ।कार्यक्रम के मुख्य वक्ता संघ के सह सरकार्यवाह मुकुंद जी ने कहा, परंपराओं की रक्षा करना भी हम सबकी जिम्मेदारी है। हमारी परंपरा में सेवा नि:स्वार्थ भाव से की जाती है। ऐसी परंपराएं हर समाज, पंथ, संप्रदाय में है। समाज में जीवनमूल्य के मायने हैं, नियम बदल सकते हैं किन्तु मूल्य नहीं बदल सकते। पूजा पद्धति अलग हो सकती है, किन्तु जीवन मूल्य नहीं बदलते। जनजातीय परंपरा वैदिक या अवैदिक हो सकता है, मत पंथ, संप्रदाय अलग हो सकते हैं किन्तु मूल्य तो पूरे भारत का एक ही है।संघ के सह सरकार्यवाह मुकुंद जी ने कहा कि लाखों हजारों वर्षों से समाज की रचना हुई उसमें कुछ बातें समान हैं। जीवनदृष्टि सभी की एक है। धरती को मातृ समान मानना। हम पानी, नदी और गौ को माता समान मानते है। हम पेड़, पौधे, पक्षी की पूजा करते हैं, यह हमारे मूल्य हैं। यह हमारे पूर्वजों ने हजारों साल से अपने अनुभव से बनाया है। भगवान को न मानने वाले का भी स्थान है, पहले भी था आज भी है।

Author: mithlabra
