4 महान तप साधक 122 दिन तक कर रहे उपवास तपस्या, 16 को तोड़ेंगे उपवास

-श्री विराग सागर, साध्वीश्री वीरतीयशा जी, साध्वीश्री विनम्रयशा जी व श्री भव्य मुनि जी दादाबाड़ी रायपुर में विराजे
रायपुर । एक ही परिवार के 4 महान तप साधक श्री विराग सागर जी, साध्वीश्री वीरतीयशा जी, साध्वीश्री विनम्रयशा जी व श्री भव्य मुनि जी का दादाबाड़ी एमजी रोड रायपुर में आगमन हुआ है। वे 122 दिन तक उपवास तपस्या कर रहे हैं। 4 मई को उनका 110वां उपवास पूर्ण हुआ। 16 मई को वे अपना उपवास तोड़ेंगे।
1 मई 2014 का वह पावन दिन राजस्थान पाली कि वह पुण्य भूमि जहां परम पूज्य खरतरगच्छ विभूषण प. पू. जयानंदमुनिजी म. सा. के सुशिष्य आगम ज्ञाता प. पू. खरतरगच्छ गणाधीश पंन्यास प्रवर गनिवर्य श्री विनयकुशल मुनि जी म. सा. महाराज आदि ठाणा की पावन निश्रा में मनोज डाकलिया अपने पूरे परिवार के साथ पत्नी मोनिका पुत्री खुशी और पुत्र भव्य डाकलिया के साथ एक ही दिन परिवार के सभी सदस्यों ने दीक्षा अंगीकार करते हुए संयम मार्ग की ओर अग्रसर होने का संकल्प पूर्ण किया।
आध्यात्मिक जगत में राजस्थान के पाली शहर का नाम 2014 में देशभर में सर्वाधिक चर्चित रहा जहां एक साथ एक परिवार के सभी सदस्यों ने संयम पथ चलने का संकल्प लिया जिसे आज तक पूरा परिवार धर्म आराधना तप आराधना और संयम साधना के साथ इस का कठोरता से पालन कर रहा है, जो हम सभी के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण है।
उज्जैन चातुर्मास करने के पश्चात तप साधना करते हुए हजारों किलोमीटर का पद विहार करते हुए नागपुर चातुर्मास संपन्न किया। तभी से परम पूज्य श्री विराग मुनि जी महाराज गुप्त उपवास तपस्या प्रारंभ कर दी, जिसकी जानकारी समाज के किसी सदस्य को नहीं थी। विराग मुनि जो भी तपस्या करते हैं। वह गुप्त तपस्या रहती है, जिसकी भनक किसी को नहीं लग पाती थी।
दीक्षा के पूर्व सांसारिक नाम मनोज डाकलिया वैराग्य जीवन के पूर्व जो कभी एक उपवास की साधना भी बड़ी मुश्किलों से कर पाते थे गुरु कृपा और नाकोड़ा पाश्र्व तीर्थ की विशेष ईश्वरी कृपा से आपका रुझान अध्यात्म तब संयम साधना की ओर लगातार बढ़ता गया वैरागी जीवन जीते हुए उपवास एकासना आयंबिल बेला तेरा अठाई मासश्रमण की तपस्या आपने दीक्षा के पूर्व भी प्रारंभ कर दी।
1 मई 1914 वैशाख सुदी दूज के दिन आपने दीक्षा ग्रहण कर संयम साधना करते हुए निर्विघ्नं तप साधना प्रारंभ कर दी जैन दर्शन में होने वाले लगभग तप आपने कर लिए हैं। अभी वर्तमान में रत्नावली कंदावली तब की आराधना प्रारंभ है। इसमें एक उपवास फिर पढऩा पारणा दो उपवास, फिर पारणा इस तरह से 16 उपवास तक की तपस्या चलती है और यह तप और यह तपस्या लगभग साडे 5 माह तक गतिमान होती है। यह तपस्या अभी वर्तमान में श्री विराग मुनि जी की गतिमान है। इन्होंने पारणा ना करते हुए इस तपस्या को चालू रखा और आज 110 की तपस्या की ओर अग्रसर हैं। जिस तरह भगवान महावीर अभिग्रह लेकर तपस्या करते थे उसी तरह श्री विराग मुनि जी महाराज अभिग्रह लेकर तपस्या प्रारंभ की थी, जो आज तक चल रही है। गुप्त रूप से तपस्या करने वाले महान साधक श्री विराग मुनि जी तीन अभिग्रह फलीभूत हो चुके हैं। वर्षीतप उपधान तप सिद्धि तप उपवास एकासना आयबिल तेला अठाई पन्द्रह की तपस्या दिन में दो बार सिर्फ गरम पानी पीकर यह कठिन तपस्या गुरु भगवन तो के आशीर्वाद से निर्विघ्नं कर रहे हैं।
साध्वीश्री वीरतीयशा जी
सांसारिक जीवन में मोनिका डाकलिया धर्म सहायक मनोज डाकलिया परिवार की पुत्रवधू राजस्थान के पाली शहर में कर्तव्यनिष्ठ धर्म परायण महिला थी। धर्म ध्यान त्याग तपस्या में हमेशा लीन रहने वाली श्रीमती मोनिका अपने पति पुत्र-पुत्री के साथ 1 मई 2014 को संयम जीवन धारण कर धर्म ध्यान त्याग तपस्या करते हुए जिन शासन की सेवा में अपना सब कुछ समर्पित कर दिया है। उपधान तप मूल विधि से करना अत्यंत दुष्कर कार्य है। संयमी जीवन के इन दिनों में लगातार प्रतिदिन किसी ना किसी तप आराधना में हमेशा लीन रहती हैं। नवपदजी की ओली, आयबिल की तप आराधना आपके जीवन का एक अमूल्य हिस्सा बन चुका है अपने गुरु भगवंतों के प्रति अमिट श्रद्धा आपके जीवन के अंदर कूट-कूट कर भरी है।
श्री भव्य मुनि जी व साध्वीश्री विनम्रयशा जी
भव्य मुनि एवं विनम्र यशा का गर्भ काल से ही धार्मिक संस्कारों का बीजारोपण भी प्रारंभ हो चुका था। सांसारिक जीवन काल में बचपन से ही मानवीय संस्कारों से ओतप्रोत थे। अपने बचपन के जीवन काल में 3 वर्ष से लेकर 7 वर्ष की उम्र तक दादा दादी के सानिध्य में रहते हुए इन दोनों ने धर्म आराधना प्रारंभ की। इनके परदादा की इच्छा थी की भव्य और खुशी दोनों दीक्षा लें। उनकी यह प्रबल भावना थी। माता के माता के गर्भ में थे, उसी दौरान चिकित्सा कार्य से जयपुर गए थे तब गुरु भगवंत के दर्शन वंदन करने जयपुर के उपाश्रय पहुंचकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया। उनके माता-पिता मनोज मोनिका डाकलिया को जया नंदी महाराज ने भविष्यवाणी कर दी थी कि यह बालक 8 वर्ष की उम्र में दीक्षा लेगा और जिन शासन की सेवा में अपना अमूल्य योगदान देगा और मैं नहीं रहूंगा। आने वाली 16 तारीख को श्री विराग मुनि जी महाराज की रायपुर छत्तीसगढ़ में 122 उपवास की तपस्या का संकल्प पूर्ण होने की संभावना है।
दुर्ग नगर का मूर्तिपूजक संघ एवं स्थानकवासी परंपरा के श्रावक श्राविकओं के कई सदस्यों की भावना है कि गुरुदेव के चातुर्मास का लाभ दुर्ग नगर को अवश्य मिले।

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Author: mithlabra