कोटा में छात्रों का दम क्यों घुट रहा है? फंदे पर लटकने जा रही छात्रा ने बताई आपबीती, भाई के कॉल से बची जान

‘मैं भी कोटा में नीट की प्रीपरेशन कर रही थी और मैं भी कुछ महीनों में डिप्रेशन की शिकार हो गई थी. मैं सो नहीं पाती थी, पैरों में झटके महसूस करती थी. एक दिन तो मैंने दुपट्टा ढूंढना शुरू किया कि अब पंखे में लटकना ही एकमात्र ऑप्शन है.

बेहतर करियर के सपने और परिवार की उम्मीदें लिए कोटा जाने वाले छात्र कैसे इतना निराश-हताश हो रहे हैं जो जिंदगी को ही हार समझ लेते हैं? उनके लिए जिंदगी से ज्यादा आसान मौत कैसे हो जाती है? वो कौन-सी बात है जो दिमाग को सुसाइड जैसे खतरनाक कदम के लिए मना लेती है? कोटा से लगातार सामने आ रहे छात्र आत्महत्या के मामले किस ओर इशारा कर रहे हैं? कोटा में नीट की तैयारी करने गई 17 वर्षीय छात्रा की कहानी इन सभी सवालों का जवाब हो सकती है. जो खुद भी फंदे पर लटकने ही वाली थी, लेकिन तभी भाई एक कॉल ने उसकी जान बचा ली. कोटा से लगातार सामने आ रही दुखद खबरों के बीच आज इस छात्रा की कहानी जानना-समझना बहुत जरूरी है.

कोटा में क्यों छात्रों का दम घुटने लगता है?
दरअसल, इस छात्रा ने इसी साल 12वीं परीक्षा दी थी और नीट की तैयारी के लिए कोटा गई थी, लेकिन एक महीने बाद डिप्रेशन होने लगा. छात्रा का कहना है कि चार-पांच साल से वहां तैयारी कर रहे बच्चों को देखकर मुझे स्ट्रैस होने लगा था, मैंने टीचर्स से भी बात की, उन्होंने समझाया भी, लेकिन मेरा डर कम नहीं हो रहा था, मुझसे कमरे में अकेले नहीं रहा जाता था, भागकर पार्क या मंदिर चली जाती थी. मेरे दिमाग में यह चलता रहता था कि माता-पिता ने मेरे लिए बहुत पैसा खर्च कर दिया है.

एक कॉल ने बचाई जान
तब मेरे मन में मरने का ख्याल आया. मैं पंखे पर लटकने के लिए दुपट्टा ही ढूंढ रही थी कि तभी मेरे भाई का फोन आ गया और मेरी जबान से यह बात निकल गई. तब भाई ने परिवार को पूरी बात बताई, उन्होंने मुझे घर बुला लिया. अब मैं अपने घर पर हूं और वहीं नीट की तैयारी कर रही हूं.

पेरेंट्स को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी
नीट या जेईई की तैयारी कर रहे हैं मैं उन्हें यह कहना चाहती हूं कि वे खुद को फर्स्ट प्रायोरिटी दें, अपनी जिंदगी से बड़ी ये नीट या आईआईटी नहीं है और मैं उन पेरेंट्स से भी अनुरोध करूंगी कि आप अपने बच्चों को समझने की कोशिश करें, उनसे बात करें, किसी भी तरह का प्रेशर न दें. जरूरी नहीं है कि आपके बच्चे समस्याओं से भाग रहे हैं, शायद ये भी हो उनसे वहां ये बर्दाश्त न हो.

‘कोटा में मेरे जैसे बहुत सारे बच्चे हैं…’
छात्रा ने हाल ही में आजतक की कोटा SOS मुहिम देखने के बाद संपर्क किया था. उसने इंस्टाग्राम पर मैसेज लिखककर अपने बारे में जानकारी दी. छात्रा ने लिखा, ‘प्लीज! आप मेरी बातों को समझना… मैं आपको ऐसे ही मैसेज नहीं कर रही… मैं भी कोटा में नीट की प्रीपरेशन कर रही थी और मैं भी कुछ महीनों में डिप्रेशन की शिकार हो गई थी. मैं सो नहीं पाती थी, पैरों में झटके महसूस करती थी. एक दिन तो मैंने दुपट्टा ढूंढना शुरू किया कि अब पंखे में लटकना ही एकमात्र ऑप्शन है. पर उसी समय मेरे भइया ने कॉल किया और मेरे जबान से बातें निकल गई. फिर उन्होंने मुझे घर बुलाया लिया. मेरी मानसिक हालत ऐसी हो गई थी कि मैं अंधविश्वास के रास्ते पर जाने लगी थी. शायद यह समझना मुश्किल हो, लेकिन इस छोटी सी उम्र में अभी तक जिंदगी का ये सब बुरा फेस था मेरी लाइफ का. सर, मैंने जो महसूस किया है, मैं ये कभी नहीं चाहूंगी कि कोई और भी इससे गुजरे. आप प्लीज कुछ कीजिए. कोटा में मेरे जैसे बहुत सारे बच्चे हैं, जिन्हें आप लोगों की जरूरत है. वो ऐसे हार जाते हैं, जैसे जिंदगी ही हार है उनकी. प्लीज सर… कुछ कीजिए’

यह मैसेज मिलने के बाद छात्रा से संपर्क किया गया, तब छात्रा ने बताया कि कोटा में ऐसा क्या है जिसकी वजह से वहां के हालात नाजुक बने हुए हैं. छात्रा ने कोटा में अपने अनुभव एक वीडियो शूट करके भेजा जिसे हर किसी को एक बार जरूर देखना चाहिए.

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Author: mithlabra